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एकटेक्स्टाईल-टेक्नोक्रेट की पचास साल तक कपड़ा मिलों में उच्च पदों पर काम करने के उपरांत हिंदी साहित्य जगत में प्रवेश नया तो नहीं है मेरे लिए उम्रके अमृत-वर्ष में। स्कूल-कॉलेज के दिनों में नई-नई कविताएँ लिखने और सुनाने का शौक रहा। मेरी कुछ कविताएँ पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई थीं उस समय। मैने अबतक 125 लेख लिखे हैं टेक्स्टाईल-टेक्नोलाजी और प्रबंधन पर इंगलिश में पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के लिए। मेरी अभीतक प्रकाशित पुस्तकें 'प्रॉडक्टीविटी' इंगलिश में, 'बिखरे फूल' और 'निखरते फूल' हिंदी में। 'सूरन' मेरे जन्म-स्थान का नाम है। अतएव जननी- जन्मभूमि के स्मरणार्थ ‘सूरन' उपनाम मैं अपनी हिंदी रचनाओं में प्रयोग में ला रहा हूँ।

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